Welfare of Children of Separated Couple: मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) ने कहा है कि अलग हो चुके दंपति के बच्चों (Children) की अभिरक्षा देने के मामलों से निपटने के दौरान उनके कल्याण और भविष्य को सर्वाधिक महत्व दिया जाना चाहिए. न्यायालय ने कहा कि पूछताछ के जरिए नाबालिग बच्चों की रुचि का पता लगाया जाना चाहिए. अदालतों से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वे केवल याचिका और जवाबी हलफनामे में लगाये गए आरोपों और प्रत्यारोपों के आधार पर नियमित रूप से नाबालिगों की अभिरक्षा प्रदान करें.
न्यायमूर्ति एस. एम. सुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति जे. सत्य नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने अपने हाल के आदेश में कहा, ‘‘अदालतों से अपेक्षा की जाती है कि वे अभिरक्षा के मामलों में शामिल हितों की वास्तविकता का पता लगाएं. बच्चों की मनःस्थिति के संबंध में गहन जांच की जरूरत है.’’
महिला हेड कांस्टेबल की अपील मंजूर
खंडपीठ ने शहर की उस महिला हेड कांस्टेबल की अपील को मंजूर किया जिसने इस साल अप्रैल में एक परिवार अदालत द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी थी. आदेश में उसके दो नाबालिग बच्चों की अभिरक्षा उसके पूर्व पति को दे दी गई थी, जिसने बच्चों को अपनी बहन के घर छोड़ दिया था.
परिवार अदालत के आदेश को रद्द करने के बाद, खंडपीठ ने उस व्यक्ति को निर्देश दिया कि वह बच्चों की अभिरक्षा उनकी मां को सौंप दें. न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि उन्हें बच्चों से मिलने का कोई अधिकार नहीं है और वह उनके जीवन या उनकी गतिविधियों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे.
दंपति ने तलाक के लिए पारस्परिक रूप से आवेदन किया था
महिला ने दिसंबर, 2012 में इस व्यक्ति से शादी की थी. मतभेद और गलतफहमी के कारण, दंपति (Couple) ने तलाक के लिए पारस्परिक रूप से आवेदन किया और परिवार अदालत ने अगस्त, 2018 में इसे मंजूरी दी. पति ने बच्चों की अभिरक्षा के लिए अर्जी दी और अदालत ने अर्जी मंजूर कर ली. बाद में वह बच्चों को अपनी बहन के घर छोड़ गया. इसके बाद अलग हुई पत्नी ने वर्तमान अपील के साथ उच्च न्यायालय (High Court) का रुख किया था.